मैं जोडता रहा वो मेरा भ्रम तोडता रहा
इस हाल बदनसीबी के,
कि मै फिर भी जोडता रहा ,वो फिर भी तोडता रहा
दिले आश थी कि एक दिन श्रांत हो वो मान जायेगा
मेरे जोडने कि हकीकत को जान जायेगा
पर तज़ुब्बे गौर कीजिये
कि ना वो हरा न हम हारे। …।
----गोविन्द गुप्ता
कानपूर ,१२-०१-२०१४
yar kuchh kahiye aap log......
ReplyDelete