Monday 5 May 2014

" चोट "

दुनियाँ की आँधियो से
मैं मलिन हो गई

अपनों की चाहत से
मैं दूर हो गई

तो फिर
ये अहिल्या
बैठेगी तपस्या पर
पथ्तर की बूत बनकर
नितांत एकांत में
तुझको याद कर

कोई न मिले मुझसे
न कोई मुझे चाहे

मैं और बस मेरी परछाई
इस दुनियाँ से बस यही दुहाई
मेरी किसी से भी
न कोई शिकायत हो
मेरे ख़ुदा
बस तेरी यही इनायत हो
की क़यामत से पहले मत आना
जबतक मेरी तपस्या पुरी न हो
मेरे पास मत आना
           ---- गोविन्द कुमार राहुल
                   कानपुर ,पनकी -२६ /०४/२०१४

"भ्रम"

क्या तुमने अशोक को फुलते देखा?

अलसाई-सी रात मे
महुआ की महक अनुभव की?

बगिया मे बौराई कोयल की
ज़ुदाई गीत सुनी

अचानक आए बादलो की
फ़ौज़
सनकी-उमंगी हवाओ की
नाचती मौज़
महसूस की क्या तुमने?

कैसी ये नशा मन पे छायि है
कैसी ज़ुदाई,कैसा दुराव
मुकम्मल-सी ज़िंदगी ही अपनी
क्या फ़िज़ा बनके
दुनिया मे छायि है?
               ---गोविंद कुमार राहुल
                    कानपुर-पनकी,3/05/2014