Wednesday, 22 January 2014

संगम तट से...

साड़ी के सिलवटो में सूरज यु खो जायेगा
ये किसने जाना था ?
ये वक़्त का कोई चाल है या ज़मीन का कोई असर
सदियो की रीत है या कोई नई पहल
अखीर किसके चक्कर में सूरज इतना डूब गया
कि दुनिया से भी बड़ा सूरज इति-सी साड़ी में घुस गया...!
                                    -- गोविन्द कुमार राहुल
                                        कानपूर ,२२-०१-२०१४  

Tuesday, 21 January 2014

सिलसिला ...!

ये दर्द का सिलसिला कुछ यूँ चलता जाता है ....
वो हमसे छुपाते रहते  है , हम उनसे छुपाते रहते है....
गम का खज़ाना बढ़ता जाये ये दिल कि खवाहिश क्या कहना
बस बक्त गुज़रता जाता है और बेइमानिओ का ये दौर यूँ ही चलता जाता है...
                                                                                    --- गोविन्द गुप्ता
                                                                                          कानपूर ,२१-०१-२०१४


Sunday, 12 January 2014

हकीकत

मैं जोडता रहा वो मेरा भ्रम तोडता रहा 
इस हाल बदनसीबी के,
कि  मै फिर भी जोडता रहा ,वो फिर भी तोडता रहा 
दिले आश थी कि एक दिन श्रांत हो वो मान जायेगा 
मेरे जोडने कि हकीकत को जान जायेगा 
पर तज़ुब्बे गौर कीजिये 
कि  ना वो हरा न हम हारे। …। 

----गोविन्द गुप्ता 
      कानपूर ,१२-०१-२०१४